Friday, January 21, 2011

Meena Kumari’s Poetry

कुछ चुनिंदा नज़्में मीना कुमारी जी की ज़ुबानी



आगाज़ तॊ होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वॊ नाम नहीं होता

जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं हॊता

हँस- हँस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकडे़
हर शख्स़ की किस्मत में ईनाम नहीं होता

बहते हुए आँसू ने आँखॊं से कहा थम कर
जो मय से पिघल जाए वॊ जाम नहीं होता

दिन डूबे हैं या डूबे बारात लिये कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता

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आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा|
वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा|

ज़र्रे-ज़र्रे पे जड़े होंगे कुँवारे सजदे,
एक-एक बुत को ख़ुदा उस ने बनाया होगा|

प्यास जलते हुए काँटों की बुझाई होगी,
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा|

मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर,
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा|

ख़ून के छींटे कहीं पोंछ न लें रेह्रों से,
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा|

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चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा,
दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा

बुझ गई आस, छुप गया तारा,
थरथराता रहा धुआँ तन्हा

ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं,
जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा

हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी,
दोनों चलते रहें कहाँ तन्हा

जलती-बुझती-सी रोशनी के परे,
सिमटा-सिमटा-सा एक मकाँ तन्हा

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा।

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टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली

रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली

जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली

मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली

होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली

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पूछते हो तो सुनो, कैसे बसर होती है
रात ख़ैरात की, सदक़े की सहर होती है

साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है, न अब आस्तीं तर होती है

जैसे जागी हुई आँखों में, चुभें काँच के ख़्वाब
रात इस तरह, दीवानों की बसर होती है

ग़म ही दुश्मन है मेरा, ग़म ही को दिल ढूँढता है
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है

एक मर्कज़ की तलाश, एक भटकती ख़ुशबू
कभी मंज़िल, कभी तम्हीदे-सफ़र होती है 

दिल से अनमोल नगीने को छुपायें तो कहाँ
बारिशे-संग यहाँ आठ पहर होती है 

काम आते हैं न आ सकते हैं बे-जाँ अल्फ़ाज़
तर्जमा दर्द की ख़ामोश नज़र होती है.

...
...
...
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मुहब्बत
क़ौस ए कुज़ह की तरह
क़ायनात के एक किनारे से
दूसरे किनारे तक तनी हुई है
और इसके दोनों सिरे
दर्द के अथह समुन्दर में डुबे हुए हैं

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मुहब्बत 
बहार की फूलों की तरह मुझे अपने जिस्म के रोएं रोएं से 
फूटती मालूम हो रही है 
मुझे अपने आप पर एक 
ऐसे बजरे का गुमान हो रहा है जिसके रेशमी बादबान 
तने हुए हों और जिसे 
पुरअसरार हवाओं के झोंके आहिस्ता आहिस्ता दूर दूर 
पुर सुकून झीलों 
रौशन पहाड़ों और 
फूलों से ढके हुए गुमनाम ज़ंजीरों की तरफ लिये जा रहे हों 
वह और मैं 
जब ख़ामोश हो जाते हैं तो हमें 
अपने अनकहे, अनसुने अल्फ़ाज़ में 
जुगनुओं की मानिंद रह रहकर चमकते दिखाई देते हैं 
हमारी गुफ़्तगू की ज़बान 
वही है जो 
दरख़्तों, फूलों, सितारों और आबशारों की है 
यह घने जंगल 
और तारीक रात की गुफ़्तगू है जो दिन निकलने पर 
अपने पीछे 
रौशनी और शबनम के आँसु छोड़ जाती है, महबूब 
आह 
मुहब्बत!

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मेरे महबूब
जब दोपहर को
समुन्दर की लहरें
मेरे दिल की धड़कनों से
हमआहंग होकर उठती हैं तो
आफ़ताब की हयात आफ़री शुआओं से मुझे
तेरी जुदाई को
बर्दाश्त करनें की क़ुव्वत1 मिलती है

शब्दार्थ:
1, ताक़त, बल, क़ुवत

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मैं जो रास्ते पे चल पड़ी 
मुझे मंदिरों ने दी निदा 
मुझे मस्जिदों ने दी सज़ा 
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी 

मेरी साँस भी रुकती नहीं 
मेरे पाँव भी थमते नहीं 
मेरी आह भी गिरती नहीं 
मेरे हात जो बड़ते नहीं 
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी 

यह जो ज़ख़्म कि भरते नहीं 
यही ग़म हैं जो मरते नहीं 
इनसे मिली मुझको क़ज़ा 
मुझे साहिलों ने दी सज़ा 
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी 

सभी की आँखें सुर्ख़ हैं 
सभी के चेहरे ज़र्द हैं 
क्यों नक्शे पा आएं नज़र 
यह तो रास्ते की ग़र्द हैं 
मेरा दर्द कुछ ऐसे बहा 

मेरा दम ही कुछ ऐसे रुका 
मैं कि रास्ते पे चल पड़ी

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यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो

रोओ मत, न रोने दो
ऐसी भी जल-थल क्या हो

बहती नदी की बांधे बांध
चुल्लू में हलचल क्या हो

हर छन हो जब आस बना
हर छन फिर निर्बल क्या हो

रात ही गर चुपचाप मिले
सुबह फिर चंचल क्या हो

आज ही आज की कहें-सुने
क्यों सोचें कल, कल क्या हो.

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यूँ तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे

बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे

बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे 
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे 

तू ने भी हम को देखा हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे।

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ये रात ये तन्हाई
ये दिल के धड़कने की आवाज़

ये सन्नाटा
ये डूबते तारॊं की

खा़मॊश गज़ल खवानी
ये वक्त की पलकॊं पर

सॊती हुई वीरानी
जज्बा़त ऎ मुहब्बत की

ये आखिरी अंगड़ाई
बजाती हुई हर जानिब

ये मौत की शहनाई
सब तुम कॊ बुलाते हैं

पल भर को तुम आ जाओ
बंद होती मेरी आँखों में

मुहब्बत का
एक ख्वाब़ सजा जाओ

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रात सुनसान है 
तारीक है दिल का आंगन 
आसमां पर कोइ तारा 
न जमीं पर जुगनू 
टिमटिमाते हैं मेरी
तरसी हुइ आँखों में 
कुछ दिये 
तुम जिन्हे देखोगे तो कहोगे : आंसू 

दफ़अतन जाग उठी दिल में वही प्यास, जिसे 
प्यार की प्यास कहूं मैं तो जल उठती है ज़बां 
सर्द एहसास की भट्टी में सुलगता है बदन 
प्यास - यह प्यास इसी तरह मिटेगी शायद 
आए ऐसे में कोई ज़हर ही दे दे मुझको

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सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
जैसे रात की तारीकी में
किसी ख़ानक़ाह का
खुला और रौशन ताक़
जहां मोमबत्तियाँ जल रही हो
ख़ामोश
बेज़बान मोमबत्तियाँ
या
वह सुनहरी जिल्दवाली किताब जो
ग़मगीन मुहब्बत के मुक़द्दस अशआर से मुंतख़ीब हो

एक पाकीज़ा मंज़र
सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा

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सुबह से शाम तलक 
दुसरों के लिए कुछ करना है 
जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं 
रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है 
ज़िन्दगी क्या है, कभी सोचने लगता है यह ज़हन 
और फिर रूह पे छा जाते हैं 
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा 
दिल में रह रहके ख़्याल आता है 
ज़िन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं? 
प्यार इक ख़्वाब था, इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ 
क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता'बीर न पूछ

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हर मसर्रत
एक बरबादशुदा ग़म है
हर ग़म
एक बरबादशुदा मसर्रत
और हर तारिकी एक तबाहशूदा रौशनी है
और हर रौशनी एक तबाहशूदा तारिकी
इसि तरह
हर हाल
एर फ़नाशूदा माज़ी
और हर माज़ी
एक फ़नाशूदा हाल

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हाँ, कोई और होगा तूने जो देखा होगा 
हम नहीं आग से बच-बचके गुज़रने वाले 

न इन्तज़ार, न आहट, न तमन्ना, न उमीद 
ज़िन्दगी है कि यूँ बेहिस हुई जाती है 

इतना कह कर बीत गई हर ठंडी भीगी रात 
सुखके लम्हे, दुख के साथी, तेरे ख़ाली हात 

हाँ, बात कुछ और थी, कुछ और ही बात हो गई 
और आँख ही आँख में तमाम रात हो गई 

कई उलझे हुए ख़यालात का मजमा है यह मेरा वुजूद 
कभी वफ़ा से शिकायत कभी वफ़ा मौजूद 

जिन्दगी आँख से टपका हुआ बेरंग कतरा 
तेरे दामन की पनाह पाता तो आंसु होता


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Written By
मीना कुमारी

Ik Kuddi Jihda Naa Mohabbat...


Ik kuddi jida naa muhabbat,
Goum hai.
Saad muraadi, soni phabbat,
Goum hai.
Soorat ousdi pariyaan vargi
Seerat di o mariam lagdi
Hasdi hai taa phul jhaddade ne
Turdi hai taa gazal hai lagdi.
Lamm-salammi, saru de kad di
Umar aje hai marke agg di,
Par naina di gal samajhdi.
Goummeyaan janam janam han hoye
Par lagda jyon kal di gal hai.
Yun lagda jyon ajj di gal hai,
Yun lagda jyon hun di gal hai.

Huney taan mere kol khaddi si
Huney taan mere kol nahi hai
Eh ki chhal hai, eh ki phatkan
Soch meri hairan baddi hai.
Nazar meri har aande jaande
Chehre da rang phol rahi hai,
Ous kuddi nu tol rahi hai.

Saanjh dhale baazaaran de jad,
Moddaan te khushbu ugdi hai.
Vehal, thakaavat, bechaini jad,
Chau raaheyaan te aa juddadi hai.
Rauley lippi tanhai vich
Os kuddi di thudd khaandi hai.
Os kuddi di thudd disdi hai.
Har chhin mennu inyon lagda hai,
Har din mennu inyon lagda hai.
Judde jashan ne bheeddaan vichon,
Juddi mahak de jhurmat vichon,
O mennu aawaaz davegi,
Men ohnu pehchaan lavaanga
O mennu pehchaan lavegi.
Par es raule de hadd vichon
Koi mennu aawaaz na denda
Koi vi mere vall na vehnda.

Par khaure kyun tapala lagda,
Par khaure kyun jhaulla painda,
Har din har ik bheedd juddi chon,
But ohda jyun langh ke jaanda.
Par mennu hi nazar na aunda.
Goum gaya maen os kuddi de
Chehre de vich goummeya rehnda,
Os de gham vich ghullda rehnda,
Os de gham vich khurda jaanda!
Os kuddi nu meri saun hai,
Os kuddi nu apni saun hai,

Os kuddi nu sab di saun hai.
Os kuddi nu jag di saun hai,
Os kuddi nu rab di saun hai,
Je kithe paddhdi sundi hove,
Jyundi ya o mar rahi hove
Ik vaari aa ke mil jaave
Vafa meri nu daag na laave
Nahin taan methon jiya na jaanda
Geet koi likheya na janda!

Ik kudi jida naa muhabat.
Goum hai.
Saad muradi sohni phabbat
Goum hai.

From :- Shiv Kumar Batalvi

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