रावण की ज़िन्दगी के कुछ तथ्य जो कि बहुत कम लोग जानते हैं
कुछ बातें , कुछ रहस्य........
रावण - एक अधूरा सच
कहा जाता है ये वाद्य यन्त्र भारत 5000 ई.पू. की एक संप्रभु के थे.
यह फिर भी प्राचीन रावण हत्ता के नाम से जाना जाता है जो आज भी राजस्थान में पाया जाता है
रामायण पुराण से राक्षस राजा रावण को इस रचना श्रेय जाता है. रावण हत्ता एक तार जो 22 तक के 3 इंच सप्टकों को शामिल किया गया था पर खेला गया.
जबकि वायलिन एक उंगली के बोर्ड पर जो 5 1/4th इंच लंबा है के साथ 4 तार पर तीन सप्टक शामिल हैं.
इस 1/4th जब 4 से गुणा 5 22 इंच जो रावण हत्ता का आकार था. दोनों एक धनुष के साथ खेला जाते है"
4. श्री लंका कुबेर से रावण तक
"श्रीलंका वैस्रावना, कुबेर को दी गई थी और कुबेर का शासन रहता हैं और वह यक्ष के साथ वहां रहते थे.
खुद कुबेर अक्सर एक यक्ष के रूप में वर्णित है, लेकिन उनके पिता विश्र्वा एक ब्रह्म और उसके नाना भारद्वाज था एक ब्राह्मण ऋषि थे. कुबेर यक्ष में खून की एक बूंद भी नहीं थी कुबेर महज यक्ष का शासक था"
राक्षस सुमाली विष्णु की चतुराई से विष्णु के हाथों से हारा था और सोच रहा था कि वह क्या कर सकता है.
उस समय उसने वैस्रावना को देखा जो विश्रवा का बेटा है, जिसे हम अब कुबेर [उत्तर के स्वामी और धन के स्वामी] के रूप में जानते हैं. कुबेर पुष्पक विमान में उड़ रहा था और अपने पिता के पास से आ रहा था.
सुमाली ने सोचा कि अगर उसकी सुंदर बेटी और विश्रवा कि शादी हो जाए, तो उसकी भी इस तरह की अद्भुत सन्तान होगी.
तो उसने अपनी बेटी कैकसी से विश्रवा दृष्टिकोण कहा. यह कहा जाता है कि कैकसी लक्ष्मी के रूप में सुंदर थी और उसके पिता को समर्पित थी.
5. रावण बहुत कम राक्षस वंशाणु था
विश्रवा ने कैकसी तीन बेटे, रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण और एक बेटी सूर्पनखा साथ आशीर्वाद दिया. विश्रवा एक ब्रह्मण था और पुलस्त्य के बेटा और ब्रह्मा का पोता था.
तो रावण और दूसरे आधे ब्रह्मण १/३२ राक्षस, ३/३२ देव, ३/८ गंधर्व थे.वे अधिक से अधिक वे ब्राह्मण राक्षस आनुवंशिक रूप से थे, वैसे थे.
यह कहा जाता है कि रावण को उसकी माँ द्वारा महत्वाकांक्षी बनाया गया था, क्यूंकि कुम्भकर्ण नरभक्षी था और विभीषण पवित्र था.
लेकिन उन सभी को वैदिक अनुष्ठानों सीखाया था और यज्ञ और अन्य इस तरह कि प्रतिक्रियांयें जब वे बाद में लंका पर शासन करने लगे.
रावण और उसके भाईयों ने ब्रह्मा [जो की उनके पिता के पिता थे] की तपस्या , ब्रह्मा गोकर्णा में है, जो पश्चिमी तट (आधुनिक मंगलौर के पास) पर है.ब्रह्मा ने मानवास और वनारस पर शासन किया
उस वरदान के साथ, रावण ने कुबेर से कहा कि श्रीलंका को छोड़ दे, उसका पुष्पक विमान लिया.[कुबेर को अलकापुरी में बसाया {आधुनिक नेपाल}].
रावण ने यम [जो वापस ब्रह्मा द्वारा वचनबध किया गया था] को देवताओं सहित हराया. बाद में उनके बेटे मेघनाथ इंद्र हराया और इंद्रजीत बने.
6. रावण व्यवहार द्वारा एक ब्रह्मण नहीं था
रावण के पिता ने एक ब्राह्मण के रूप में देवताओं को यज्ञ और हवन की पेशकश की थी.
रावण देवताओं के साथ लड़ा और जीत गया.उसने अपने पिता से वह सभी महिलाएं ले ली जिनसे उन्होंने विवाह किया था.
रावण महिलाओं की इच्छाओं के प्रति असभ्य और उन पर ध्यान देने का प्रयास करता था, तब भी जब वे उसे पसंद नहीं करती थी.
रावण ने विशेष रूप से वाल्मीकि की और भारतीयों की पीढ़ियों के हजारों की नापसंद अर्जित की. क्योंकि वह हमारे कोमल माता सीता हरण किया और उसके जीवन दुखी कर दिया.हालांकि श्री राम वो है जिन्होंने कि रावण की मृत्यु के समय में रावण को माफ कर दिया, भारत में अब भी रावण का पुतला हर साल जलाया जाता है.
भारत में, सामान्यत्या यदि कोई कुछ बुरा करता है तो उसे राक्षस या राक्षसी कहा जाता है
यह अभी भी सामान्य के लिए किसी राक्षस या राक्षस पुकारा अगर वे कुछ बुरा नहीं है.
7. सीता रावण की पुत्री थीं
रामकथा के प्रतिनायक रावण में बहुत से श्रेष्ठ गुण होते हुये भी उसका एक आचरण ,उसका एक दोष उसकी सारी अच्छाइयें पर पानी फेर जाता है और उसे सबके रोष और वितृष्णा का पात्र बना देता है ।यदि उस पर पर-नारी में रत रहने और सबसे बढ़कर सीता हरण का दोष न होता तो रावण के चरित्र का स्वरूप ही बदल जाता ।वास्तवियह है कि सीता रावण की पुत्री थी और सीता स्वयंवर से पहले ही वह इस तथ्य से अवगत था ।
'जब मै अज्ञान से अपनी कन्या के ही स्वीकार की इच्छा करूं तब मेरी मृत्यु हो."
-अद्भुत रामायण 8-12 .
रावण की इस स्वीकारोक्ति के अनुसार सीता रावण की पुत्री सिद्ध होती है।अद्धुतरामायण मे ही सीता के आविर्भाव की कथा इस कथन की पुष्टि करती है -
दण्डकारण्य मे गृत्स्मद नामक ब्राह्मण ,लक्ष्मी को पुत्री रूप मे पाने की कामना से, प्रतिदिन एक कलश मे कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूँदें डालता था (देवों और असुरों की प्रतिद्वंद्विता शत्रुता में परिणत हो चुकी थी। वे एक दूसरे से आशंकित और भयभीत रहते थे । उत्तरी भारत मे देव-संस्कृति की प्रधानता थी। ऋषि-मुनि असुरों के विनाश हेतु राजाओं को प्रेरित करते थे और य़ज्ञ आदि आयोजनो मे एकत्र होकर अपनी संस्कृति के विरोधियों को शक्तिहीन करने के उपाय खोजते थे।ऋषियों के आयोजनो की भनक उनके प्रतिद्वंद्वियों के कानों मे पडती रहती थी,परिणामस्वरूप पारस्परिक विद्वेष और बढ जाता था)।एक दिन उसकी अनुपस्थिति मे रावण वहाँ पहुँचा और ऋषियों को तेजहत करने के लिये उन्हें घायल कर उनका रक्त उसी कलश मे एकत्र कर लंका ले गया।कलश को उसने मंदोदरी के संरक्षण मे दे दिया-यह कह कर कि यह तीक्ष्ण विष है,सावधानी से रखे।
कुछ समय पश्चात् रावण विहार करने सह्याद्रि पर्वत पर चला गया।रावण की उपेक्षा से खिन्न होकर मन्दोदरी ने मृत्यु के वरण हेतु उस कलश का पदार्थ पी लिया।लक्ष्मी के आधारभूत दूध से मिश्रित होने के कारण उसका प्रभाव पडा।मन्दोदरी मे गर्भ के लक्षण प्रकट होने लगे ।अनिष्ठ की आशंकाओं से भीत मंदोदरी ने,कुरुश्क्षेत्र जाकर उस भ्रूण को धरती मे गाड दिया और सरस्वती नदी मे स्नान कर चली आई।
8. रावण, सरमा और मन्दोदरी
रावण सुर्यास्त से पहले भोजन करता था! कहा जाता है कि एक दिन सरमा [गन्धर्वराज महात्मा शैलूष की पुत्री और विभीषण की पत्नी] और मंदोदरी [दिति के पुत्र मय की पुत्री और रावण की पत्नी] आपस में बातें कर रही थी, मंदोदरी को अहसास हुआ की सांझ होने को है और उन्होंने अभी खाना तैयार भी नहीं किया!
तो सरमा ने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा कि "मंदोदरी आप बेफिक्र होकर खाना बनाईये, मैं आज सूर्य को वहीँ रोके रखती हूँ!"
सरमा ने सूर्य को अस्त होने से रोका और मंदोदरी ने रावण के लिए खाना बनाकर परोस दिया!
खाना खाने के बाद रावण को अहसास हुआ कि आज कोई दिव्या शक्ति के कारण ही सूर्यास्त में इतनी देर लगी है!
तब मंदोदरी ने सारा वृतांत रावण से कह सुनाया!
रावण ये सुन कर स्तब्ध रह गया और सरमा को वामन में लेने [शादी करने] की सोची!
रावण सरमा के पास गया, और अपना प्रस्ताव सरमा के आगे रखा! सरमा ने रावण से कहा कि "हे रावण, मुझे वामन में धरने के लिए पहले आपको गंगा स्नान करना होगा!"
रावण गंगा स्नान के लिए गया तो स्नान के बाद उस सरोवर में उसे एक कमल मिला, उस कमल को वो सरमा को भेंट करना चाहता था, तो रावण उस कमल की जड़ तक पहुंचना चाहता था,
उस कमल की जड़ पातळ लोक तक जाती थी और इस तरह रावण पाताल लोक में पहुँच गया.
9. रावण का उदय
पद्म पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्म पुराण, रामायण, महाभारत, आनन्द रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में रावण का उल्लेख हुआ है। रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं।
पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था अर्थात उनके पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी ने कुबेर को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने कुबेला में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथाकुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुये।
तुलसीदास जी के रामचरितमानस में रावण का जन्म शाप के कारण हुआ था। वे नारद एवं प्रताप भानु की कथाओं को रावण के जन्म कारण बताते हैं।
रावण के दस सिर
रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिये चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध होता है। रामचरितमानस में यह भी वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते हैं पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे- आसुरी माया से बने हुये। मारीच का चाँदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी कृत्रिम माना जा सकता है।
कुछ बातें , कुछ रहस्य........
रावण - एक अधूरा सच
1. रावण वेद व्यास का एक चाचा था
रावण ब्रह्मा से पंक्ति में ४ स्थान पर था (ब्रह्मा - Pulastya - Visravas - रावण).
व्यास ब्रह्मा से पंक्ति में 5 वें स्थान पर था. (ब्रह्मा - Vasishtha - शक्ति - Parasara - व्यास).
रावण ब्रह्मा से पंक्ति में ४ स्थान पर था (ब्रह्मा - Pulastya - Visravas - रावण).
व्यास ब्रह्मा से पंक्ति में 5 वें स्थान पर था. (ब्रह्मा - Vasishtha - शक्ति - Parasara - व्यास).
2. मंदोदरी & माया दानव
रावण की पत्नी मंदोदरी माया दानव [एक महान खगोलविद बिल्डर, और भ्रम के निर्माता] की बेटी थी.
3. हनुमान और रावण दोनों ही महान संगीतकार थे
"भारत में वायलिन का मूल रावणस्त्रोम में पता लगाया है.कहा जाता है ये वाद्य यन्त्र भारत 5000 ई.पू. की एक संप्रभु के थे.
यह फिर भी प्राचीन रावण हत्ता के नाम से जाना जाता है जो आज भी राजस्थान में पाया जाता है
रामायण पुराण से राक्षस राजा रावण को इस रचना श्रेय जाता है. रावण हत्ता एक तार जो 22 तक के 3 इंच सप्टकों को शामिल किया गया था पर खेला गया.
जबकि वायलिन एक उंगली के बोर्ड पर जो 5 1/4th इंच लंबा है के साथ 4 तार पर तीन सप्टक शामिल हैं.
इस 1/4th जब 4 से गुणा 5 22 इंच जो रावण हत्ता का आकार था. दोनों एक धनुष के साथ खेला जाते है"
4. श्री लंका कुबेर से रावण तक
"श्रीलंका वैस्रावना, कुबेर को दी गई थी और कुबेर का शासन रहता हैं और वह यक्ष के साथ वहां रहते थे.
खुद कुबेर अक्सर एक यक्ष के रूप में वर्णित है, लेकिन उनके पिता विश्र्वा एक ब्रह्म और उसके नाना भारद्वाज था एक ब्राह्मण ऋषि थे. कुबेर यक्ष में खून की एक बूंद भी नहीं थी कुबेर महज यक्ष का शासक था"
राक्षस सुमाली विष्णु की चतुराई से विष्णु के हाथों से हारा था और सोच रहा था कि वह क्या कर सकता है.
उस समय उसने वैस्रावना को देखा जो विश्रवा का बेटा है, जिसे हम अब कुबेर [उत्तर के स्वामी और धन के स्वामी] के रूप में जानते हैं. कुबेर पुष्पक विमान में उड़ रहा था और अपने पिता के पास से आ रहा था.
सुमाली ने सोचा कि अगर उसकी सुंदर बेटी और विश्रवा कि शादी हो जाए, तो उसकी भी इस तरह की अद्भुत सन्तान होगी.
तो उसने अपनी बेटी कैकसी से विश्रवा दृष्टिकोण कहा. यह कहा जाता है कि कैकसी लक्ष्मी के रूप में सुंदर थी और उसके पिता को समर्पित थी.
5. रावण बहुत कम राक्षस वंशाणु था
विश्रवा ने कैकसी तीन बेटे, रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण और एक बेटी सूर्पनखा साथ आशीर्वाद दिया. विश्रवा एक ब्रह्मण था और पुलस्त्य के बेटा और ब्रह्मा का पोता था.
तो रावण और दूसरे आधे ब्रह्मण १/३२ राक्षस, ३/३२ देव, ३/८ गंधर्व थे.वे अधिक से अधिक वे ब्राह्मण राक्षस आनुवंशिक रूप से थे, वैसे थे.
यह कहा जाता है कि रावण को उसकी माँ द्वारा महत्वाकांक्षी बनाया गया था, क्यूंकि कुम्भकर्ण नरभक्षी था और विभीषण पवित्र था.
लेकिन उन सभी को वैदिक अनुष्ठानों सीखाया था और यज्ञ और अन्य इस तरह कि प्रतिक्रियांयें जब वे बाद में लंका पर शासन करने लगे.
रावण और उसके भाईयों ने ब्रह्मा [जो की उनके पिता के पिता थे] की तपस्या , ब्रह्मा गोकर्णा में है, जो पश्चिमी तट (आधुनिक मंगलौर के पास) पर है.ब्रह्मा ने मानवास और वनारस पर शासन किया
उस वरदान के साथ, रावण ने कुबेर से कहा कि श्रीलंका को छोड़ दे, उसका पुष्पक विमान लिया.[कुबेर को अलकापुरी में बसाया {आधुनिक नेपाल}].
रावण ने यम [जो वापस ब्रह्मा द्वारा वचनबध किया गया था] को देवताओं सहित हराया. बाद में उनके बेटे मेघनाथ इंद्र हराया और इंद्रजीत बने.
6. रावण व्यवहार द्वारा एक ब्रह्मण नहीं था
रावण के पिता ने एक ब्राह्मण के रूप में देवताओं को यज्ञ और हवन की पेशकश की थी.
रावण देवताओं के साथ लड़ा और जीत गया.उसने अपने पिता से वह सभी महिलाएं ले ली जिनसे उन्होंने विवाह किया था.
रावण महिलाओं की इच्छाओं के प्रति असभ्य और उन पर ध्यान देने का प्रयास करता था, तब भी जब वे उसे पसंद नहीं करती थी.
रावण ने विशेष रूप से वाल्मीकि की और भारतीयों की पीढ़ियों के हजारों की नापसंद अर्जित की. क्योंकि वह हमारे कोमल माता सीता हरण किया और उसके जीवन दुखी कर दिया.हालांकि श्री राम वो है जिन्होंने कि रावण की मृत्यु के समय में रावण को माफ कर दिया, भारत में अब भी रावण का पुतला हर साल जलाया जाता है.
भारत में, सामान्यत्या यदि कोई कुछ बुरा करता है तो उसे राक्षस या राक्षसी कहा जाता है
यह अभी भी सामान्य के लिए किसी राक्षस या राक्षस पुकारा अगर वे कुछ बुरा नहीं है.
7. सीता रावण की पुत्री थीं
रामकथा के प्रतिनायक रावण में बहुत से श्रेष्ठ गुण होते हुये भी उसका एक आचरण ,उसका एक दोष उसकी सारी अच्छाइयें पर पानी फेर जाता है और उसे सबके रोष और वितृष्णा का पात्र बना देता है ।यदि उस पर पर-नारी में रत रहने और सबसे बढ़कर सीता हरण का दोष न होता तो रावण के चरित्र का स्वरूप ही बदल जाता ।वास्तवियह है कि सीता रावण की पुत्री थी और सीता स्वयंवर से पहले ही वह इस तथ्य से अवगत था ।
'जब मै अज्ञान से अपनी कन्या के ही स्वीकार की इच्छा करूं तब मेरी मृत्यु हो."
-अद्भुत रामायण 8-12 .
रावण की इस स्वीकारोक्ति के अनुसार सीता रावण की पुत्री सिद्ध होती है।अद्धुतरामायण मे ही सीता के आविर्भाव की कथा इस कथन की पुष्टि करती है -
दण्डकारण्य मे गृत्स्मद नामक ब्राह्मण ,लक्ष्मी को पुत्री रूप मे पाने की कामना से, प्रतिदिन एक कलश मे कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूँदें डालता था (देवों और असुरों की प्रतिद्वंद्विता शत्रुता में परिणत हो चुकी थी। वे एक दूसरे से आशंकित और भयभीत रहते थे । उत्तरी भारत मे देव-संस्कृति की प्रधानता थी। ऋषि-मुनि असुरों के विनाश हेतु राजाओं को प्रेरित करते थे और य़ज्ञ आदि आयोजनो मे एकत्र होकर अपनी संस्कृति के विरोधियों को शक्तिहीन करने के उपाय खोजते थे।ऋषियों के आयोजनो की भनक उनके प्रतिद्वंद्वियों के कानों मे पडती रहती थी,परिणामस्वरूप पारस्परिक विद्वेष और बढ जाता था)।एक दिन उसकी अनुपस्थिति मे रावण वहाँ पहुँचा और ऋषियों को तेजहत करने के लिये उन्हें घायल कर उनका रक्त उसी कलश मे एकत्र कर लंका ले गया।कलश को उसने मंदोदरी के संरक्षण मे दे दिया-यह कह कर कि यह तीक्ष्ण विष है,सावधानी से रखे।
कुछ समय पश्चात् रावण विहार करने सह्याद्रि पर्वत पर चला गया।रावण की उपेक्षा से खिन्न होकर मन्दोदरी ने मृत्यु के वरण हेतु उस कलश का पदार्थ पी लिया।लक्ष्मी के आधारभूत दूध से मिश्रित होने के कारण उसका प्रभाव पडा।मन्दोदरी मे गर्भ के लक्षण प्रकट होने लगे ।अनिष्ठ की आशंकाओं से भीत मंदोदरी ने,कुरुश्क्षेत्र जाकर उस भ्रूण को धरती मे गाड दिया और सरस्वती नदी मे स्नान कर चली आई।
8. रावण, सरमा और मन्दोदरी
रावण सुर्यास्त से पहले भोजन करता था! कहा जाता है कि एक दिन सरमा [गन्धर्वराज महात्मा शैलूष की पुत्री और विभीषण की पत्नी] और मंदोदरी [दिति के पुत्र मय की पुत्री और रावण की पत्नी] आपस में बातें कर रही थी, मंदोदरी को अहसास हुआ की सांझ होने को है और उन्होंने अभी खाना तैयार भी नहीं किया!
तो सरमा ने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा कि "मंदोदरी आप बेफिक्र होकर खाना बनाईये, मैं आज सूर्य को वहीँ रोके रखती हूँ!"
सरमा ने सूर्य को अस्त होने से रोका और मंदोदरी ने रावण के लिए खाना बनाकर परोस दिया!
खाना खाने के बाद रावण को अहसास हुआ कि आज कोई दिव्या शक्ति के कारण ही सूर्यास्त में इतनी देर लगी है!
तब मंदोदरी ने सारा वृतांत रावण से कह सुनाया!
रावण ये सुन कर स्तब्ध रह गया और सरमा को वामन में लेने [शादी करने] की सोची!
रावण सरमा के पास गया, और अपना प्रस्ताव सरमा के आगे रखा! सरमा ने रावण से कहा कि "हे रावण, मुझे वामन में धरने के लिए पहले आपको गंगा स्नान करना होगा!"
रावण गंगा स्नान के लिए गया तो स्नान के बाद उस सरोवर में उसे एक कमल मिला, उस कमल को वो सरमा को भेंट करना चाहता था, तो रावण उस कमल की जड़ तक पहुंचना चाहता था,
उस कमल की जड़ पातळ लोक तक जाती थी और इस तरह रावण पाताल लोक में पहुँच गया.
9. रावण का उदय
पद्म पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्म पुराण, रामायण, महाभारत, आनन्द रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में रावण का उल्लेख हुआ है। रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं।
पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था अर्थात उनके पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी ने कुबेर को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने कुबेला में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथाकुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुये।
तुलसीदास जी के रामचरितमानस में रावण का जन्म शाप के कारण हुआ था। वे नारद एवं प्रताप भानु की कथाओं को रावण के जन्म कारण बताते हैं।
रावण के दस सिर
रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिये चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध होता है। रामचरितमानस में यह भी वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते हैं पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे- आसुरी माया से बने हुये। मारीच का चाँदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी कृत्रिम माना जा सकता है।
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