राह चलते हुए
रस्ते में कुछ
दुकाने
और ठेले
हैं आते,
पानी-पुरी
और अजब-गजब सा
खाने को
है मिलता,
खडा
घर की चौखट
पर,
दरवाजा खटखटाता
है वो,
है
मैं ही हूं वो,
नोट हूं दस का
फटा-पुराना,
बच्चों का सपना
अब मुझको भी
भूल गए वो,
शख्स की खातिर,
अब भी मैं कुछ
कर ना सका,
मेरे बदले,
ये सोच वो
चुप हो जाता था,
मेसू, बेर,
झूले-खिलौने
और जादू के खेल,
जीए,
साल बहुत अनमोल
थे वो,
खाब संजोता,
हर पल को मैं
तागों में पिरोता,
रस्ते में कुछ
दुकाने
और ठेले
हैं आते,
चटपटी चाट,
दुकानों में कहीं
बच्चों के खिलौने
तो कहीं
घर का सामान
है मिलता,
पानी-पुरी
और अजब-गजब सा
खाने को
है मिलता,
घर तक जाते-जातेजेब देख चुपचाप
अकसर
सोचकर खामोश
हो जाता है वो,
खडा
घर की चौखट
पर,
दरवाजा खटखटाता
है वो,
क्या है उसकीकोई और नहीं
जेब में ऐसा?
जिसे देख
घबराता है वो...!
है
मैं ही हूं वो,
नोट हूं दस का
फटा-पुराना,
कहने को हैपहले था मैं
पैसा सब कुछ
कीमत में कुछ
खास नहीं मैं,
बच्चों का सपना
अब मुझको भी
भूल गए वो,
अजीज था मैंजैसे कि इस
हर शख्स का
पहले
अब मुझको भी
छोड गए वो,
शख्स की खातिर,
अब भी मैं कुछ
कर ना सका,
मुद्दत पहले भीक्या खरीदे पहले
वो ऐसे,
मुझसे सपने
संजोता था,
मेरे बदले,
ये सोच वो
चुप हो जाता था,
बचपन था तबकुल्फ़ी, लच्छे,
शायद उसका,
बचपन की कुछ
यादें थी,
मेसू, बेर,
झूले-खिलौने
और जादू के खेल,
ये सब बातें यादमेरे संग जो उसने
थी उसको,
भूला नहीं था कुछ
भी वो,
जीए,
साल बहुत अनमोल
थे वो,
सपने, लम्हे, यादें,नोट हूं दस का
पल-छिन,
सब के ही मैं साथ
जुडा,
खाब संजोता,
हर पल को मैं
तागों में पिरोता,
नोट हूं मैं दस का,
हां...
नोट हूं मैं दस का...
#191020132224
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Chetan Jaura |
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