Monday, October 21, 2013

दस रुपये का नोट 2

राह चलते हुए
रस्ते में कुछ
दुकाने
और ठेले
हैं आते,

दुकानों में कहीं
बच्चों के खिलौने
तो कहीं
घर का सामान
है मिलता,
चटपटी चाट,
पानी-पुरी
और अजब-गजब सा
खाने को
है मिलता,
घर तक जाते-जाते
अकसर
सोचकर खामोश
हो जाता है वो,
जेब देख चुपचाप
खडा
घर की चौखट
पर,
दरवाजा खटखटाता
है वो,
क्या है उसकी
जेब में ऐसा?
जिसे देख
घबराता है वो...!
कोई और नहीं
है
मैं ही हूं वो,
नोट हूं दस का
फटा-पुराना,
कहने को है
पैसा सब कुछ
कीमत में कुछ
खास नहीं मैं,
पहले था मैं
बच्चों का सपना
अब मुझको भी
भूल गए वो,
अजीज था मैं
हर शख्स का
पहले
अब मुझको भी
छोड गए वो,
जैसे कि इस
शख्स की खातिर,
अब भी मैं कुछ
कर ना सका,
मुद्दत पहले भी
वो ऐसे,
मुझसे सपने
संजोता था,
क्या खरीदे पहले
मेरे बदले,
ये सोच वो
चुप हो जाता था,
बचपन था तब
शायद उसका,
बचपन की कुछ
यादें थी,
कुल्फ़ी, लच्छे,
मेसू, बेर,
झूले-खिलौने
और जादू के खेल,
ये सब बातें याद
थी उसको,
भूला नहीं था कुछ
भी वो,
मेरे संग जो उसने
जीए,
साल बहुत अनमोल
थे वो,
सपने, लम्हे, यादें,
पल-छिन,
सब के ही मैं साथ
जुडा,
नोट हूं दस का
खाब संजोता,
हर पल को मैं
तागों में पिरोता,
नोट हूं मैं दस का,
हां...
नोट हूं मैं दस का...

#191020132224

Chetan Jaura

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