काग़ज़ के फूलों से, वो ख़ुश्बू ढूँढता रहा,
दिल मेरा तोड़कर भी, आँखें मूँदता रहा,
दिल को जो तोड़कर, वो मुझसे पूछता रहा,
"कहीं तन्हा तो नहीं मैं?", वो यहीं सोचता रहा...
#180720131529
दिल मेरा तोड़कर भी, आँखें मूँदता रहा,
इक नक्श था कोई, इक अक्स था कोई,मैं जानता था, तब नादान था वो शख्स,
ताउम्र आईने में, जिसे ढूँढता रहा,
दिल को जो तोड़कर, वो मुझसे पूछता रहा,
वो जिस्म से नहीं, था मेरी रूह जुड़ा,लड़खड़ाती ज़ुबाँ से, था कहा अलविदा उसे,
इक उम्र तक जिसे, मैं यूँ ही पूजता रहा,
"कहीं तन्हा तो नहीं मैं?", वो यहीं सोचता रहा...
#180720131529
![]() |
Chetan Jaura |
No comments:
Post a Comment