मरने के बाद उनके, उनकी नज़्म पढी,
मालूम हुआ, कि जिंदा... वो उस नज़्म में है...
ना उसके सिवा कोई, हमको नज़र आया...
किस शहर से है आई, आब-ओ-हवा ये ग़म की,
क्यूं आज तुमने छेडा, तराना ये शायरी का,
ये दिल्लगी नहीं, हक़ीक़त है जिन्दगी की...
मालूम हुआ, कि जिंदा... वो उस नज़्म में है...
August 1' 2012
पढते तो शौंक से हो, नज्में कभी कभी,मगर वो दिल में जिदा, तुम देखते नहीं...
August 2' 2012
देखा जो दिल में हमने , दिलबर नज़र आया,ना उसके सिवा कोई, हमको नज़र आया...
August 3' 2012
पहचान जाते जो तुम, मरते ना वो कभी,उस दिल्लगी के बाद ही, नज्में थी ये लिखीं...जो चाहते उसे दिल से, दिलबर वो बन जाता,ना उसके सिवा कोई, तुमको नज़र आता...
August 5' 2012
है कौन सा सफ़र ये, है कौन सी डगर ये,किस शहर से है आई, आब-ओ-हवा ये ग़म की,
क्यूं आज तुमने छेडा, तराना ये शायरी का,
ये दिल्लगी नहीं, हक़ीक़त है जिन्दगी की...
August 5' 2012
तराना ये शायरी का, इसे दिल्लगी ना समझो,जो जिन्दगी से सिखा, तुमको बता रहे हैं,है इश्क़ का सफ़र ये, हर क़दम पे बेवफ़ा हैं,हैं दिलजले वहाँ पर, जिस शहर में हम रहते...
August 6' 2012
Tribute to मीना कुमारी
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