Wednesday, September 25, 2013

तुम, ख्वाब और क़िताब

तेरी झलक पाने को बेताब हूं मैं,
कभी शब, तो कभी आफ़ताब हूं मैं,

मेरे इसी सफ़्हे में बसी है तूं,
इन्ही औराक़ से बनी क़िताब हूं मैं,

डरता हूं कि चली ना जाओ तुम,
किस्मत का लिखा बुरा ख्वाब हूं मैं,

"कौन हूं मैं?" पूछती हो क्यूं,
हर सवाल का तेरे, इक जवाब हूं मैं...

#26112006

From: "Zannat"

सफ़्हे= पन्ना, Page । औराक़= पन्ने, Pages


Chetan Jaura

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