मैं
सोचता हूं
कैसे बयां करुं तुम्हे,
कैसे मैं बताऊं......
किसी की
आरजु,
फ़रियाद हो तुम.....
इक जवाब,
आंखों में रुका
आफ़ताब हो तुम......
फिर से खो जाता हूं
उन यादों में,
उन ख्वाबों में...
अकसर तन्हाई में
डूबकर,
यादों में तेरी
खो सा जाता हूं......
कि दिल में
बस गई हो तुम,
नजर में
रच गई हो तुम,
जुबां पर
जच गई हो तुम......
अधुरी हो,
अधुरी रह ही जाती हो...
सोचता ही रहता हूं
कि कैसे बयां करूं तुमको.............
#21/220220122327
From: "Zannat"
सोचता हूं
कैसे बयां करुं तुम्हे,
कैसे मैं बताऊं......
उस जन्नत कीकिसी की जिंदगी,
इक परी
सूरज की
इक किरण हो तुम.....
किसी की
आरजु,
फ़रियाद हो तुम.....
उन हसीं लम्हों कीजुबां पर अटका
इक याद,
दिल का
इक एहसास हो तुम.....
इक जवाब,
आंखों में रुका
आफ़ताब हो तुम......
बात जुबां की जो आतीऔर मैं
तो क़लम है क्यूं
रुक जाती......
फिर से खो जाता हूं
उन यादों में,
उन ख्वाबों में...
औरफिर
इस दिल में
ढूंढता हूं,
और
पूछ्ता हूं खुद से
"कौन हो तुम?"
अकसर तन्हाई में
डूबकर,
यादों में तेरी
खो सा जाता हूं......
अकेलाफिर मुझे याद आता है
मुस्क़राता हूं
कि दिल में
बस गई हो तुम,
नजर में
रच गई हो तुम,
जुबां पर
जच गई हो तुम......
मैंअधुरी थी,
फिर से सोचता हूं
और
सोचता ही रहता हूं.......
अधुरी हो,
अधुरी रह ही जाती हो...
क्यूं तुम पूरी नहीं होती?और
क्यूं तुम नारी नहीं होती?
क्यूं अब तक ख्वाब रहती हो?
अधुरा ख्वाब रहती हो..................
मैं अकसर सोचता हूं,
सोचता ही रहता हूं
कि कैसे बयां करूं तुमको.............
#21/220220122327
From: "Zannat"
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Chetan Jaura |
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