दस महत्वपूर्ण प्रतीक
1. ओम - सबसे महत्वपूर्ण हिंदू प्रतीक है, अक्सर हिंदू धर्म के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल होता है,
2. प्रार्थना में हाथ - पवित्रता लिए सम्मान का एक संकेत है, जो कि दिल को प्रिय है,
3. कमल लोटस (पद्म) - अतिक्रमण / पवित्रता का प्रतीक. कीचड़ से बाहर बढ़ रहा है, यह सुंदर है, और पानी पर आराम यद्यपि यह उसे स्पर्श नहीं करता है,
4. शंख - आरती के दौरान प्रयोग किया है: एक विष्णु के चार प्रतीकों में से एक. दूसरों कमल क्लब है, और डिस्क रहे हैं,
5. स्वस्तिक - एक प्राचीन सौर आह्वान लिए शुभ संकेत माना जाता है,
6. त्रिशूल (त्रिशूल) - शिव के प्रतीक है, अक्सर शैव द्वारा किए त्यागी,
7. कलश - नारियल एक कमंडल पर आम के पत्तों से की परिक्रमा की. अक्सर आग बलिदान जैसे अनुष्ठान में किया जाता है,
8. गाय - पवित्रता मातृत्व, और अहिंसा (अहिंसा) का प्रतीक,
9. कमल (गुरु या देवता के) पैर - वरिष्ठों के पैर छूने से प्रस्तुत करने और सेवा के एक दृष्टिकोण को दर्शाता है.
10. दीप / दीपक - प्रकाश का प्रतीक.
2. प्रार्थना में हाथ - पवित्रता लिए सम्मान का एक संकेत है, जो कि दिल को प्रिय है,
3. कमल लोटस (पद्म) - अतिक्रमण / पवित्रता का प्रतीक. कीचड़ से बाहर बढ़ रहा है, यह सुंदर है, और पानी पर आराम यद्यपि यह उसे स्पर्श नहीं करता है,
4. शंख - आरती के दौरान प्रयोग किया है: एक विष्णु के चार प्रतीकों में से एक. दूसरों कमल क्लब है, और डिस्क रहे हैं,
5. स्वस्तिक - एक प्राचीन सौर आह्वान लिए शुभ संकेत माना जाता है,
6. त्रिशूल (त्रिशूल) - शिव के प्रतीक है, अक्सर शैव द्वारा किए त्यागी,
7. कलश - नारियल एक कमंडल पर आम के पत्तों से की परिक्रमा की. अक्सर आग बलिदान जैसे अनुष्ठान में किया जाता है,
8. गाय - पवित्रता मातृत्व, और अहिंसा (अहिंसा) का प्रतीक,
9. कमल (गुरु या देवता के) पैर - वरिष्ठों के पैर छूने से प्रस्तुत करने और सेवा के एक दृष्टिकोण को दर्शाता है.
10. दीप / दीपक - प्रकाश का प्रतीक.
शिवलिंग पूजा का महत्व 1
श्री शिवमहापुराण के सृष्टिखंड अध्याय १२श्लोक ८२से८६ में ब्रह्मा जी के पुत्र सनत्कुमार जी वेदव्यास जी को उपदेश देते हुए कहते है कि हर गृहस्थ को देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर पंचदेवों (श्री गणेश,सूर्य,विष्णु,दुर्गा,शंकर) की प्रतिमाओं में नित्य पूजन करना चाहिए क्योंकि शिव ही सबके मूल है, मूल (शिव)को सींचने से सभी देवता तृत्प हो जाते है परन्तु सभी देवताओं को तृप्त करने पर भी प्रभू शिव की तृप्ति नहीं होती। यह रहस्य देहधारी सद्गुरू से दीक्षित व्यक्ति ही जानते है।
सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु ने एक बार ,सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के साथ निर्गुण-निराकार- अजन्मा ब्रह्म(शिव)से प्रार्थना की, "प्रभों! आप कैसे प्रसन्न होते है।"
1. प्रभु शिव बोले,"मुझे प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का पूजन करो। जब जब किसी प्रकार का संकट या दु:ख हो तो शिवलिंग का पूजन करने से समस्त दु:खों का नाश हो जाता है।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय श्लोक से पृष्ठ )
2. जब देवर्षि नारद ने श्री विष्णु को शाप दिया और बाद में पश्चाताप किया तब श्री विष्णु ने नारदजी को पश्चाताप के लिए शिवलिंग का पूजन, शिवभक्तों का सत्कार, नित्य शिवशत नाम का जाप आदि क्रियाएं बतलाई।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय श्लोक से पृष्ठ )
3. एक बार सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी देवताओं को लेकर क्षीर सागर में श्री विष्णु के पास परम तत्व जानने के लिए पहुॅचे । श्री विष्णु ने सभी को शिवलिंग की पूजा करने की आज्ञा दी और विश्वकर्मा को बुलाकर देवताओं के अनुसार अलग-अलग द्रव्य के शिवलिंग बनाकर देने की आज्ञा दी और पूजा विधि भी समझाई।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय १२ )
4. रूद्रावतार हनुमान जी ने राजाओं से कहा कि श्री शिवजी की पूजा से बढ़कर और कोई तत्व नहीं है। हनुमान जी ने एक श्रीकर नामक गोप बालक को शिव-पूजा की दीक्षा दी। (प्रमाण श्री शिवमहापुराण कोटीरूद्र संहिता अध्याय १७ ) अत: हनुमान जी के भक्तों को भी भगवान शिव की प्रथम पूजा करनी चाहिए।
5. ब्रह्मा जी अपने पुत्र देवर्षि नारद को शिवलिंग की पूजा की महिमा का उपदेश देते है। देवर्षि नारद के प्रश्न और ब्रह्मा जी के उत्तर पर ही श्री शिव महापुराण की रचना हुई है। पार्वती जगदम्बा के अत्यन्त आग्रह से, जनकल्याण के लिए, निर्गुण निराकार अजन्मा ब्रह्म (शिव) ने सौ करोड़ श्लोकों में श्री शिवमहापुराण की रचना की। चारों वेद और अन्य सभी पुराण, श्री शिवमहापुराण की तुलना में नहीं आ सकते। प्रभू शिव की आज्ञा से विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने श्री शिवमहापुराण को २४६७२ श्लोकों में संक्षिप्त किया है। ग्रन्थ विक्रेताओं के पास कई प्रकार के शिवपुराण उपलब्ध है परन्तु वे मान्य नहीं है केवल २४६७२ श्लोकों वाला श्री शिवमहापुराण ही मान्य है। यह ग्रन्थ मूलत: देववाणी संस्कृत में है और कुछ प्राचीन मुद्रणालयों ने इसे हिन्दी, गुजराती भाषा में अनुदित किया है। श्लोक संख्या देखकर और हर वाक्य के पश्चात् श्लोक क्रमांक जॉंचकर ही इसे क्रय करें। जो व्यक्ति देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर , एक बार गुरूमुख से श्री शिवमहापुराण श्रवण कर फिर नित्य संकल्प करके (संकल्प में अपना गोत्र,नाम, समस्याएं और कामनायें बोलकर)नित्य श्वेत ऊनी आसन पर उत्तर की ओर मुखकर के श्री शिवमहापुराण का पूजन करके दण्डवत प्रणाम करता है और मर्यादा-पूर्वक पाठ करता है, उसे इस प्रकार सम्पूर्ण २४६७२ श्लोकों वाले श्री शिवमहापुराण का बोलते हुए सात बार पाढ करने से भगवान शंकर का दर्शन हो जाता है। पाठ करते समय स्थिर आसन हो, एकाग्र मन हो, प्रसन्न मुद्रा हो, अध्याय पढते समय किसी से वार्ता नहीं करें, किसी को प्रणाम नहीं करे और अध्याय का पूरा पाठ किए बिना बीच में उठे नहीं। श्री शिवमहापुराण पढते समय जो ज्ञान प्राप्त हुआ उसे व्यवहार में लावें।श्री शिव महापुराण एक गोपनीय ग्रन्थ है। जिसका पठन (परीक्षा लेकर) सात्विक, निष्कपटी, प्रभू शिव में श्रद्धा रखने वालों को ही सुनाना चाहिए।
6. जब पाण्ड़व लोग वनवास में थे , तब भी कपटी, दुर्योधन , पाण्ड़वों को कष्ट देता था।(दुर्वासा ऋषि को भेजकर तथा मूक नामक राक्षस को भेजकर) तब पाण्ड़वों ने श्री कृष्ण से दुर्योधन के दुर्व्यवहार के लिए कहा और उससे राहत पाने का उपाय पूछा। तब श्री कृष्ण ने उन सभी को प्रभू शिव की पूजा के लिए सलाह दी और कहा "मैंने सभी मनोरथों को प्राप्त करने के लिए प्रभू शिव की पूजा की है और आज भी कर रहा हूँ।तुम लोग भी करो।"
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